प्राक्कथन

किसी युवा रचनाकार के रचनाकर्म पर चाहे जैसी टिप्पणी कर लें, लेकिन यह बात माननी पड़ेगी कि किसी भी सृजन के पीछे ऊर्जा का विराट स्रोत होता है। इस स्रोत की चमक को पहिचानने एवं इसे अनुभूत करने वाले ही रचनाकर्मी की तड़प एवं उसके विचारों के आवेश को महसूस कर सकते हैं।

युवा एवं ऊर्जावान पत्रकार संजय द्विवेदी ऐसे ही लेखक हैं, जो अपनी रचनाधर्मिता के प्रति बेहद संवेदनशीन एवं सतर्क हैं तथा उसे भरपूर जीने की कोशिश करते हैं। ‘इस सूचना समर में’ के बाद उनकी दूसरी कृति ‘मत पूछ हुआ क्या क्या’ चिंतन के नए द्वार खोलती है। अनुभव के लिहाज से पत्रकारिता की उनकी उम्र यद्यपि बहुत दीर्घ नहीं है, लेकिन सूक्ष्म से सूक्ष्म को जानने की अदम्य इच्छा तथा अपने आस-पास के वातावरण से जीवंत सरोकार रखने की उनकी ललक उन्हें प्रौढ़ता प्रदान करती है। इस संकलन में उनके विचारों के प्रतिबिंब एक ओर झिलमिल रोशनी बिखरते हैं, तो दूसरी ओर सामाजिक व राजनीतिक विद्रूपताओं पर कड़े प्रहार करते हुए व्यवस्था की कलई भी खोलते हैं।

किसी युवा पत्रकार की ऐसी सृजनात्मकता निश्चय ही प्रशंसनीय है।

उम्मीद है, यह किताब ‘मत पूछ हुआ क्या क्या’ भी पत्रकार बिरादरी के साथ-साथ आज के विभिन्न तबकों में भी समान रूप से पसंद की जाएगी।

-दिवाकर मुक्तिबोध
सी-145, सेक्टर-1।
देवेन्द्र नगर,
रायपुर (छग)

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