प्रशस्तियां


युवा पत्रकार संजय संजय द्विवेदी की जनवरी, 2003 में छपी किताब ‘इस सूचना समर में ’ की मीडिया जगत में व्यापक चर्चा हुई। कुछ पत्र और कुछ टिप्पणियां
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समाज को सही दिशा मिले यह काम साहित्यकार और अखबार का है। संजय द्विवेदी न इसी उत्थान की भावना से लेखन किया है।

0महामण्डलेश्वर स्वामी शारदानंद सरस्वती जी

हम पत्रकारों का हर वक्त एक ही कार्य है-स्वच्छंद, निरपेक्ष, सटीक टिप्पणी समय चक्र ने अनुसार घटती घटनाओं पर कर अपने पाठकों को हर विषय समग्र तैयार करना । आपने यह काम बखूबी किया है। मेरी राय में आपकी पुस्तक पत्रकारिता का अध्ययन कर रहे छात्रों के लिए उपयोगी होगी।

0विनोद माहेश्वरी
प्रबंध संपादक
नवभारत, नागपुर

सूचना क्रांति के दौर में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी।

0जगदम्बिका पाल
पूर्व मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश

संवेदनशीलता और निर्भरता के गठजोड़ की तुम्हारी बात बहुत सही लगी। सच बात तो यह है कि संवेदनशीलता ही हमारे पेशे को सार्थकता देती है। झलके भले ही नहीं हमारे लेखक में, पर हमारा सोच इस संवेदनशीलता के बिना एकांगी हो जाता है। मुझे विश्वास है तुम अपने जीवन-लेखन में यह संवेदनशीलता बनाए रख सकोगे।

0विश्वनाथ सचदेव
स्थानीय संपादक
नवभारत टाइम्स
मुंबई

संजय तन से युवा हैं, पर चिंतन में वे पर्याप्त प्रौढ़ हैं। उनकी अभिव्यिक्त में गले तक उतर जाने का सामर्थ्य है । मैंने उनकी लेखनी में कभी दारिद्रय नहीं देखी। पूरी शाक्ति के साथ लेखनी प्रदेश की पत्रकारिता में संजय के पदाचिन्ह अंकित करती रही है।

0राजेन्द्र शर्मा
प्रधान संपादक
स्वदेश समाचार पत्र समूह
भोपाल)


संजय द्विवेदी ने पुस्तक के माध्यम से सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया है। यह किताब लोगों तक पहुंच कर उन्हें यर्थाथ से अवगत कराएगी।

0नंदकुमार पटेल
गृहमंत्री : छत्तीसगढ़ शासन
रायपुर, छत्तीसगढ

‘इस सूचना समर में’ शब्द-शब्द पढ़ गया । टीएन शेषन, कल्पनाथ राय के संदर्भ में आपकी बेबाक टिप्पणी अविस्मरणीय है। कथ्य और शिल्प दोनों को आपको कारण उंचाई मिलेगी । आपसे हिंदी पत्रकारिता है। कथ्य और साहित्य को सुपुष्ट होना है :-

हिंदी सेवी विज्ञवर मानस व्याख्याकार । श्री संजय से हो रहा पत्र-जगत श्रृंगार ।
पत्र जगत श्रृंगार सूचना लोक विधायक। धर्म-कर्ममय भारतीय संस्कृति उन्नायक।
शब्दों का ले सुमन और भावों का चंदन । चतुर्वेदमय पत्रकार संजय का वंदन ।

0डॉ. अर्जुन तिवारी
पाठ्यक्रम सलाहकार
जनसंचार एवं पत्रकरिता विभाग,
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा

‘इस सूचना समर में’ पढ़ी। ‘नवभारत’ के साथ ही अन्य अखबारों में प्रकाशित तुम्हारे सभी लेखों को पढ़कर अच्छा लगा। लेख काबिल-ए-तारीफ हैं। पुस्तक के माध्यम से तुम्हारी प्रतिभा को और गहराई से समझने का मौका मिला।

0केशर सिंह विष्ट
संपादक : डांडी-कांठी, ठाणे


आपने अपनी पुस्तक के दोनों खण्डों ‘राजनीति’ एवं ‘लोग’ के तहत हमारे राजनीतिक –सामाजिक तंत्र की जैसी व्याख्या की है वह अद्भुत है। इसी प्रकार आप स्वयं अग्रसर रहकर पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी कलम के जादू को हिंदुस्तान ही नहीं वरन पूरे विश्व में खुशबू की तरह फैलाएं । मैं अपने जादू परिवार कीतरफ से आपके उज्जवल भविष्य की मंगलकामना करता हूं।

0जादूगर ओपी शर्मा,
कानपुर
ताब से आपका अध्ययन झलकता है। यह महसूस होता है कि लेखक अपने आसपास की घटनाओं को लेकर मूक दर्शक नहीं है वरन वह लोकहित के नजरिए से उन पर न केवल सोचता है बल्कि चाहता है कि लोग जाने कि कहां क्या हो रहा है । लेखक ने सच को सच लिखने का साहस किया है।

0योगेश मिश्रा
पत्रकार : अंबिकापुर

पुस्तक में संकलित लेख राजनीति, राजनेता एवं पत्रकार से मुख्यतः जुड़े हैं। इनमें विविधता के साथ-साथ एक समता भी है। समता का यह संदर्भ भारतीयता और भारतीय दृष्टि से जुड़ा है । इसी कारण 1992से 2000के मध्य की घटनाओं और संदर्भों पर इस समय लिखे लेख एवं टिप्पणियां आज भी प्रासंगिक हैं । संदर्भों के साथ ही इस पुस्तक के शीष्र ने भी मुझे बहुत आकर्षित किया ।

0 डॉ. ओम प्रकाश सिंह
रीडरः महामना मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान,
काशी विद्यापीठ, वाराणसी)
पत्र-पत्रिकाओं की नजर में
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युवा पत्रकार संजय द्विवेदी की नई कृति ‘इस सूचना समर में’ सामाजिक-राजनीतिक मूल्यों के टूटने-विखरने एवं उससे उपजे संघर्ष के नवोन्मेष का पहला गंभीर दस्तावेज है ।

0आंचलिक पत्रकार (मासिक) –
भोपाल (फरवरी, 2003)

संजय का शिल्प चित्ताकर्षक है । उनके लिखे में एक प्रवाह है जो पाठक को अपने साथ बहा ले जाता है ।

0संवेद
वाराणसी (अप्रैल- मई, 2003)

आज ये सभी लेख बासे नहीं अपितु पहले से अधिक महत्वपूर्ण शक्ल अख्तियार कर चुके हैं क्योंकि आज का राजनीतिक परिदृश्य उसी पूर्ववर्ती आधार पर खड़ा है । यह पुस्तक आज की परिस्थितियों से एक उपयोगी ग्रंथ सिद्ध हो रही है ।

0शिखर वार्ता (मासिक)
भोपाल (मार्च, 2003)

संजय ने काफी परिश्रम किया है तथा तथ्यों एवं घटनाओं को इस मजबूती से रखा है, जिससे राजनीति की स्वस्थ परंपराओं को तिरोहित करते उन हाथों को पहचना भी जा सके तथा उनका परिष्कार भी किया जा सके ।

0 नवभारत (हिंदी दैनिक)
मुंबई (30मार्च, 2003)


यह पुस्तक अत्यंत प्रामणिकता के साथ अनेक तथ्यों और सूचनाओं के साथ अपने समय का राजनीतिक इतिहास तो दर्ज करती ही है साथ ही राजनीति से संबंधित व्यापक सामान्यीकरणों तक भी पहुंचाती है ।

0हरिभूमि(हिंदी दैनिक)
(9मार्च, 2003)

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में संजय का युगबोध अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के बीच भारत की पावन भूमि में सामाजिक अलगव के कारणों की गहरी छानबिन करता है। मदमस्त राजनेताओं तथा अलमस्त समाजवादियों की थोथी दलीलों तथा व्यवहारों में गुम होती भारतीय आत्मा, शुचिता, पवित्रता की खोज किताब का अभीष्ठ है ।

0दैनिक गांडीव
वाराणसी (8मार्च, 2003)


सभी वर्गों के सचेतकों विशेषकर इतिहास, राजनीति एवं पत्रकारिता में रूचि रखने वाले लोगों एवं विद्यार्थियों के लिए यह किताब एक आईना है ।

0दैनिक जनकर्म
रायगढ़ (9 फरवरी, 2003)

जन-गण-मन में चर्चित अनेक महत्वपूर्ण राजनीति ज्ञों, समाजसेवियों तथा साहित्यकारों की गुणधर्मिता व इसके प्रभावों पर विषद चर्चा सूचना समर को उपयोगी संदर्भ के रूप में स्थापित करती है ।

0दैनिक कर्णप्रिय
कोरबा (9 फरवरी, 2003)

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