सपनों को सच करने की जिम्मेदारी
किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र का यह सपना होना चाहिए कि वह ज्ञान-विज्ञान के विविध अनुशासनों में अपनी स्थानीय भाषाओं में मौलिक काम कर सके । हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के सामने भी यही चुनौती मुंह बाए खड़ी हैं । दुनिया भर में ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों, चिंतन के नए फलकों, तकनीकगत आविष्कारों और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे नित नए प्रयोगों को कैसे निज भाषा में उपलब्ध कराया जाए-यह चिंता आज बहुत महत्वपूर्ण हो गई है।
अन्य विशेषज्ञता के क्षेत्र जनभाषा में सुलभ न होने पर भी सीधा बहुत प्रभाव नहीं छोड़ते, किंतु आईटी या सूचना प्रोद्योगिकी का विषय सीधे आमजन की कार्यक्षमता, व्यवसाय एवं सूचना प्राप्ति के मामले पर अप्रतिम साबित हुआ है। जैसे चिकित्सा विज्ञान की बारीकियों, इंजीनियरिंग के कौशल ,परमाणु उर्जा के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों के लोकहित से सरोकार जरूर हैं, क्योंकि अंततः हर ज्ञान मानवता के उपयोग के लिए ही है, किंतु इन विषयों के लिए जरूरी नहीं कि उनका उपभोक्ता भी उसे गहराई से जाने। जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टर की विशेषज्ञता जरूरी है, मरीज का ज्ञान मायने नहीं रखता । किंतु सूचना प्रोद्योगिकी एक ऐसे अनुशासन के रूप में हमारे सामने है, जिसका ज्ञान आपको किसी भी क्षेत्र में काम करने के बावजूद आपके कौशल को बढ़ाने में सहायक हो सकता है। उसका न्यूनतम ज्ञान आपको होने एवं जीने के सहायक बन सकता है और आपके लिए सफलता के नए सोपान तैयार कर सकता है। कंप्यूटर की आमजन तक सुलभता के साथ उसके इस हौवे को खत्म करना भी जरूरी है कि वह सिर्फ विदेशी भाषा में आपके आदेश सुन सकता है। इन दिनों हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में इस क्षेत्र में नए प्रयोग करने वाले आगे आ रहे हैं और सही अर्थों में लोगों तक इस क्रांति का असर पहुंचाने में लगे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के साथ देश के सुपर पावर बनने के सपने के मूल में यही जिम्मेदारी निहित है कि कैसे यह प्रौद्योगिकी आम लोगों की भाषा में उनके परिवेश के मुताबिक उपयोगी बन सके। लोगों के बीच इसकी उपयोगिता बताकर उन्हें इस सपने से जोड़कर सही लक्ष्य पाए जा सकते हैं। इस सपने को पूरा करने के लिए हिंदी को, अन्य भारतीय भाषाओं को तकनीक एवं पूंजी के क्षेत्र में दखल करने के लायक बनाना होगा। जब भाषा व्यापार एवं आर्थिक लाभ देने की शक्ति अर्जित कर लेगी तो जाहिर तौर पर उसकी प्रगति कोई रोक नहीं सकता । इसमें अंग्रेजी से लड़ाई या ‘अंग्रेजी हटाओँ’ जैसे भटकाव लाने वाले नारे सहायक नहीं हो सकते । हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में मौलिक काम शुरू हो। कंपनियां यदि अंग्रेजी में कोई शोध या प्रोग्राम बनाती हैं तो उसकी तत्काल हिंदी में भी उपलब्धता के प्रयास हों । अंग्रेजी और कम्प्यूटर को साथ जोड़कर देखने का जो हौवा है, उसे भी खत्म करने की कोशिशें जरूरी हैं। इस संदर्भ में हिंदी सिने उद्योग को उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है, जिसने न सिर्फ हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कीर्तिमान बनाए। वरन वह एक भारी मुनाफे के उद्योग में परिणत हो चुका है। कोई भी हिंदी सिने जगत में पैसा लगाना चाहता है। सही अर्थों में आज मनोरंजन की दुनिया में हिंदी की ‘तूती’ बोल रही है। आईटी भी ऐसा इलाका साबित हो सकता है । जहां हिंदी व भारतीय भाषाएं अपनी सिद्धता साबित कर दें। यह तभी संभव होगा, जब बाजार में हिंदी की मांग बढ़ेगी । हिंदी माध्यम में काम करने वाली कंपनियां इससे प्रोत्साहित हो सकेंगी व अपने नए कार्यक्रम भी हिंदी क्षेत्रों के लिए उपलब्ध कराएंगी । हिंदी क्षेत्रों में न्यूनतम कंप्यूटर साक्षरता व अल्प जागरुकता के कारण हिंदुस्तानी कंपनियां भी एक्सपोर्ट में ही लगी हैं। हालांकि ‘इंटरनेट ऑन-केबल टी वी ’ की उपलब्धता के बाद तेजी से आईटी जागरुकता का दौर शुरु हो सकता है। ऐसे में साफ्टवेयर की मांग बढ़ेगी-व्यवसाय बढ़ेगा। जाहिर है, जब हम आईटी क्रांति की बात करते है तो हमें जनभागीदारी का विचार भी साथ-साथ करना होगा। क्योंकि लोगों का सहभाग ही किसी अभियान की सफलता की गारंटी बन सकता है। लोगों के बीच कंप्यूटर साक्षरता को फैलाकर ही हम इसकी शक्ति का अहसास कर सकते हैं। अन्यथा यह प्रोद्योगिकी भी ठीक अंग्रेजी की तरह चंद लोगों की ताकत बनकर रह जाएगी। आम लोगं के बीच पहुँच कर ही सूचना की ताकत उनमें नए विचारों, नए रास्तों का, नए विक्ल्पों का मार्ग दिखाएंगी । आम आदमी को तभी सही अर्थों में न्याय मिल सकेगा । सूचना प्रौद्योगिकी की शक्ति उन्हें (आम लोगों) एक नई ताकत का अहसास कराएगी।
(27 दिसंबर, 2000)
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